आयुर्वेदानुसार शरीर को बलवान,स्फूर्तिवान बनाने के लिए सभी ऋतुओं में शीत(ठंडी) ऋतु श्रेष्ठ ऋतु है।
क्योंकि शीत ऋतु का ठंडा तापमान जठराग्नि(भोजन पचाने की शक्ति) को प्रबल करके अच्छी भूख लगाने के साथ-साथ उसको पचाने की शक्ति को भी कई गुणा बढ़ा देता है।
इसलिए इस ऋतु में ताजा , स्निग्ध एवं भारी भोजन करना हितकारी है।
इस ऋतु में देर से पचने वाली उड़द,राजमा,छोले इत्यादि जैसा भोजन भी अच्छे से पच जाता है,इसलिए इस ऋतु में ऐसा शक्ति देने वाला भोजन ही करना चाहिए।
इस ऋतू में गाजर का हलवा,गोंद के लड्डू,गुड़ की गज्जक,चिक्की जो पचने में भारी और शक्तिवर्धक है अवश्य ही खानी चाहिए।
उपरोक्त सभी खाद्य वस्तु में शुद्ध गाय का घी डालने से भोजन स्निग्ध,स्वादिष्ट एवं रुचिकर होकर संपूर्ण शरीर को शक्ति प्रदान करने वाला बन जाता है।
जो लोग शीत ऋतु में शुद्ध घी का प्रयोग नहीं करते उनके शरीर में बिना घी का रुक्ष (रूखा-सूखा) भोजन वायु को और बढ़ाकर विभिन्न प्रकार के दर्द जैसे गठिया,बाय,साइटिका,स्लिप-डिस्क,घुटने का दर्द,कमर-दर्द जैसी कष्टदायक बीमारियों को और बढ़ा देता है।
इसलिए शीत ऋतु में गाय का शुद्ध घी खाने से ना सिर्फ रोगों से बचाव किया जा सकता है अपितु घी का प्रयोग करके शरीर को बलवान भी बनाने के लिए इस ऋतु से श्रेष्ठ कुछ नहीं है।